जातिवादी शासन में विविधता का भ्रम : सीके लाल (एकबार अवश्य पढ़ें)
7 मार्च 2025 को इस अखबार के नेपाली संस्करण कान्तिपुर दैनिक के पहले पन्ने पर एक साहसिक शीर्षक ने मेरा ध्यान खींचा। शीर्षक का मोटे तौर पर अनुवाद कुछ इस प्रकार था: “एक मधेशी महिला को वरिष्ठ होने के बावजूद स्वास्थ्य सचिव के पद से बाहर रखा गया।”

संभव है कि खबर में जिस शख्सियत—डॉ. संगीता कौशल मिश्र, अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव—का जिक्र है, उनके साथ मेरे लगभग पारिवारिक संबंध के कारण मेरी राय प्रभावित हो रही हो। लेकिन मैं ईमानदारी से मानता हूं कि अगर उन्हें यह मौका मिलता, तो वह इस पद को गरिमा प्रदान करतीं, जो अक्सर विवादों से घिरा रहता है। उनका दरकिनार किया जाना एक स्पष्ट और शायद सुनियोजित संदेश देता है: मधेशियों को जो मिल रहा है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए और अधिक की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए।
हालांकि, संगीता ने जिस तरह अपने साथ हुए अन्याय को संभाला, वह मुझे उम्मीद से भर देता है।
संघर्ष और उत्कृष्टता
मैं पहले ही लिख चुका हूं कि कोशी अस्पताल की मेडिकल सुप्रिटेंडेंट के रूप में कोविड-19 संकट के दौरान संगीता के नवाचारपूर्ण प्रयास कितने प्रभावशाली थे। तब से लेकर अब तक उन्होंने परोपकार मातृ तथा स्त्री अस्पताल की निदेशक, स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय की प्रवक्ता, और अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों में शानदार प्रदर्शन कर देश-विदेश में प्रशंसा अर्जित की है। इसके बावजूद, जब सरकार ने उन्हें नजरअंदाज कर एक कनिष्ठ अधिकारी को पदोन्नति दी, तो उनके सहयोगियों और शुभचिंतकों की तरह मैं स्तब्ध नहीं हुआ।
मुझे पहले से ही इस जातीय-राष्ट्रवादी शासन से किसी निष्पक्ष फैसले की उम्मीद नहीं थी।
नेपाल की सत्ता संरचना और बहुसंख्यकवाद
जातीय-राष्ट्रवादी विचारधारा के अनुयायी नेपाल को “नेवर एंडिंग पीस एंड लव” (Never Ending Peace and Love) की भूमि कहते हैं और “यो मन त मेरो नेपाली हो!” जैसे गीतों को गर्व से गाते हैं। कभी यह सामूहिक आत्ममुग्धता (“This is Nepal, you better understand!“) के रूप में उभरता है, तो कभी लाचार स्वीकृति (“This is Nepal, what to do?“) के रूप में। “यो नेपाल हो” (यह नेपाल है) एक ऐसा वाक्य बन चुका है, जो बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व और हाशिए पर खड़े समुदायों की अधीनता दोनों को सहज रूप से न्यायोचित ठहराता है।
एक महिला, एक योग्य और आत्मविश्वासी पेशेवर, एक स्पष्टवादी व्यक्तित्व और एक मधेशी—अगर इन सब पहचान के साथ कोई व्यक्ति भारत में जन्मा हो, तो कथित ‘स्वदेशी नेपाली शुद्धता’ के स्वयंभू रक्षक उसे स्वीकार नहीं कर सकते।
नेपाल की विवादास्पद संविधान ने पहले ही वर्गीकृत नागरिकता प्रणाली को संस्थागत कर दिया है, जहां बाहरी दिखने वालों के लिए न्याय अपवाद बन जाता है और बहुसंख्यक समूह का वर्चस्व नियम। संगीता इन तमाम पहचान समूहों का प्रतिनिधित्व करती हैं और शायद यही कारण है कि उन्हें जानबूझकर नजरअंदाज किया गया।
निष्कर्ष
नेपाल में जातीय प्रभुत्व के माहौल में ‘विविधता’ का भ्रम बनाए रखना सत्ता संरचना का एक महत्वपूर्ण औजार है। जब तक इस मानसिकता को बदला नहीं जाता, तब तक योग्य और मेहनती लोगों के साथ अन्याय का यह सिलसिला जारी रहेगा।
पूरा लेख पढ़ें: काठमांडू पोस्ट
https://kathmandupost.com/columns/2025/03/11/the-delusion-of-diversity-in-an-ethnocracy